Tuesday, June 11, 2013

बीजेपी के अंदर रेसकोर्स (प्रधानमंत्री आवास) का रेस लगा है। इस रेस में तेज़ दौड़ने वाले घोड़े की जीत होगी। लेकिन ज़रा उस दौर को याद कीजिए जब सोमनाथ से अयोध्या की रथ यात्रा पर आडवाणी लिकले थे हर तरफ हिन्दुत्व के मुखौटे की बात करते थे और अटल बिहारी वाजपयी सर्वधर्म की बात करते थे। उस वक्त बीजेपी में नं 1 नेता आडवाणी थे। जिसने भी आडवाणी को रोकने की कोशिश की वो पार्टी में हाशिये (अटल,कल्याण,उमा,नायडु...) पर गया। वक्त का पहिया घुमा...एक आखरि बिसात बिछी। आडवाणी ने धर्मनिरपेक्षता वाली बेसिन में अपना चेहरा धोया और खुद को रेसकोर्स की रेस में शामिल कर लिया। लेकिन मात खा गये “हिन्दुत्व मोदी” से। फिर आडवाणी ने ब्रम्हास्त्र चला। NDA के अध्यक्ष पद और पार्टी की सदस्यता छोड़ बाकी पदों से इस्तीफा दिया। रेसकोर्स की रेस में बने रहने की चाहत अब भी बरकरार है। अगर चुनाव के बाद एंटी कांग्रेस और एंटी मोदी लोगों को एकजुट किया तो.....इसे ही कहते मुंगेरी लाल के हसीन सपने। लेकिन बड़ा सवाल भ्रष्टाचार से हांफती कांग्रेस को सांस लेने का बीजेपी ने मौका दे दिया