Wednesday, March 3, 2010

रिश्तों का आइना

अक्सर रिश्तों को रोते हुए देखा है, अपनों की ही बाँहो में मरते हुए देखा है टूटते, बिखरते, सिसकते, कसकते रिश्तों का इतिहास... समाज की कटीली झाडियों के बीच लहूलुहान होते रिश्तों को देखा है। कभी-कभी तो रिश्तों को घर के मुडेर पर ऑक्सीजन और स्लाइन चढ़ते भी देखा है। तमाशबीनों को सरेबाज़ार रिश्तों का चीरहरण करते और रिश्तों की बोली लगाते सुना है। ठेकेदारों को पंचायत में रिश्तों का अंतिम संस्कार करते देखा है.....पर कुछ रिश्ते ऐसे भी हैं जो जन्म से लेकर बचपन जवानी - बुढ़ापे से गुजरते हुए, बड़ी गरिमा से जीते हुए महान हो जाते हैं ! ऐसे रिश्ते सदियों में नजर आते हैं !